आज ट्रेन से सफर करते हुए अचानक ये ख्याल आया कि रोजमर्रा की जिंदगी में यूं टिक कर बैठने का तो वक़्त कभी मिला ही नहीं।शायद इसलिए लोग वक़्त निकालकर छुट्टियां बिताने कहीं दूर जाते हैं।
ना सुबह के अलार्म का डर है ,और ना घंटी बजने पर दरवाजा खोलना है ,
अगर ऐसा ही है तो क्यूं ना घर को ही ट्रेन का डब्बा समझ कभी टिक लिया जाए ,आराम तो घर में ही है जाने क्यूं लोग इसे ट्रेन के डब्बों में खोज रहे हैं।
सफर भी बड़ा दिलचस्प है जितना लंबा हो उतना सुकून देता है
काश घर के झरोखों से हम वो वादियां, वो नज़ारे, वो बसेरो को अपनी आँखों से जाते हुए देख पाते, तो यक़ीनन घर किसी सफ़र से कम न होता।
This is a matter of thought. Nice post abhi
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Nice blog
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